Murder or trap 11
शंभू काका के ऐसे चीखते ही मृदुल और चिराग घबरा गए थे। मृदुल ने फटाफट आ कर शंभू काका के कंधे पर हाथ रख कर दिलासा दिया और चिराग उनके लिए पानी ले आया।
"काका..! थोड़ा सा पानी पी लीजिए!!" शंभू काका की हालत खून भरी साड़ी के बारे में पता लगने के बाद और भी ज्यादा बिगड़ गई थी। एक तो कुछ देर पहले ही अनीता के गायब होने के बारे में पता चला और अब ये।
मृदुल, चिराग और रुद्र तीनों ही शंभू काका के आसपास ही बैठकर उन्हें सांत्वना दे रहे थे। थोड़ी देर बाद शंभू काका थोड़े शांत हुए तो रुद्र ने उनसे पूछा,
"आप इतने दिनों से कहां थे..?"
शंभू काका कुछ देर तक वैसे ही चुपचाप बैठे रहे। उनकी ऐसी हालत देखकर मृदुल, चिराग और रुद्र भी घबरा गए थे। वह यह सोच रहे थे कि जो हालत अनीता के गायब होने के बारे में पता चलने पर दीप और दीप की फैमिली की होनी चाहिए थी.. वह हालत उनके घर में काम करने वाले एक नौकर की हो रही थी।
चिराग ने शंभू काका को हाथ से हल्का सा हिलाया.. उन्हें थोड़ा बहुत होश आया..
"हं..हां..!क.. क्या पूछ रहे थे..??" शंभू काका ने लगभग हकलाते हुए कहा।
"काका हम यह पूछ रहे थे.. कि आप बिना बताए इतने दिनों से कहां गायब हो गए थे..?" रुद्र ने उनसे सवाल किया।
शंभू काका ने हुए कहा, "मैं और गायब..! नहीं तो..! मैं कहां गायब होंऊंगा..?? मैं तो घर पर सभी से इजाजत लेकर गया था। दीप ने खुद मुझे पचास हजार रुपए दिए थे और यहां की चिंता नहीं करने के लिए भी कहा था।"
शंभू काका की बात सुनकर मृदुल, चिराग और रुद्र तीनों को बहुत ही ज्यादा आश्चर्य हुआ। तीनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और कंधे उचका दीये।
रुद्र ने शंभू काका की तरफ देखते हुए पूछा, "पर काका..! घर में किसी ने भी आपके बारे में कुछ भी नहीं बताया..! आपके बारे में पता भी हमें बाहर काम करने वाले लोगों से चला था…! वैसे अगर आप बहुत ज्यादा परेशान ना हो तो हम अनीता के बारे में भी कुछ सवाल आप से करना चाहते हैं..??"
"बिल्कुल..! बिल्कुल साहब..! पूछो क्या पूछना चाहते हो..? वैसे भी उन जालिमों के कारण अनीता बिटिया का कहीं पता नहीं है। पता नहीं उन लोगों ने क्या किया होगा??"
"होगा मतलब..??" मृदुल ने पूछा।
"मतलब क्या साहब..! बस पैसे के लालची लोग हैं.. क्या कर सकते हैं..??" शंभू बाबा ने दुखी होते हुए कहा।
"पर आप इतने दिनों से थे कहां..??" चिराग ने बीच में ही बात काटते हुए कहा।
"कहां जाएंगे साहब..? घर बार तो हमारा कुछ है नहीं?? ब्याह हमारा हुआ नहीं.. बस जब अनीता बिटिया ब्याह कर आई थी.. तभी से उन्होंने हमें एक पिता का ही मान सम्मान दिया था। कहने को तो हम उस घर के नौकर थे। लेकिन अनीता बिटिया ने हमें एक पिता का ही मान सम्मान दिया था।" शंभू काका ने कहा।
"फिर भी आप उसे ऐसे छोड़ कर चले गए। क्यों..??" चिराग ने पूछा।
"अनीता बिटिया के कहने पर ही हम गए थे।" शंभू काका ने बताया।
"मतलब..? अनीता के कहने पर कहां गए थे..??" मृदुल ने पूछा।
"कुछ दिनों से अनीता बिटिया के पिताजी बहुत ही ज्यादा बीमार थे। डॉक्टरों ने यही कहा था कि उनके बचने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं है। वह अपने अंतिम समय में अनीता बिटिया से मिलना चाहते थे। लेकिन इन घरवालों ने अनीता बिटिया को उनसे मिलने नहीं जाने दिया। और तो और अनीता बिटिया ने जब कुछ पैसे उनके इलाज के लिए मांगे तो घर में बहुत ही ज्यादा हंगामा हुआ था अनीता को बहुत ही ज्यादा सुनाया। इतने ताने दिए थे कि हम भी वह सुनकर बहुत ज्यादा दुखी हो गए थे। इतना सुनाने के बाद भी उन्होंने उस बेचारी को एक फूटी कौड़ी नहीं दी।" शंभू काका ने अपने जाने की वजह बताई।
मृदुल, रुद्र और चिराग.. शंभू काका की बात सुनकर हैरान थे। उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि बात इतनी ज्यादा बिगड़ी होगी। उन्होंने शंभू काका की तरफ देखा.. शंभू काका कुछ देर कहीं सोच में डूब गए थे।
चिराग ने उन्हें हल्का सा हिलाया तो वह चौक गए और आगे की कहानी बताने लगे!
"जब घरवालों ने अनीता बिटिया को ना तो उनके पिता से मिलने जाने दिया और ना ही उनके इलाज के लिए पैसे ही दिए। तब अनीता बिटिया इस बात से बहुत ज्यादा दुखी हो गई थी। वो मेरे पास रोते-रोते आई थी और मेरे पैर पकड़ कर रोने लगी। उसने रोते-रोते मुझसे उसके पापा की देखभाल के लिए जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा था, "काका मैं जब से इस घर में आई हूं.. तभी से मैंने आपको एक पिता का ही दर्जा दिया है। इसी नाते आपकी बेटी आपसे कुछ मांग रही है। प्लीज मना मत करना.. इस वक्त मेरे पापा को मेरी बहुत जरूरत है। लेकिन मैं जा नहीं सकती.. क्या आप वहां पर जाकर मेरे पिता की पापा के अंतिम समय में उनकी देखभाल करेंगे..?? हो सकता है आपके वहां जाने के कारण उनकी हालत थोड़ी सुधर जाए और अगर ना भी सुधरी तो मृत्यु के बाद उनकी शरीर की बहुत दुर्दशा तो नहीं होगी। उनका अंतिम संस्कार लावारिसों की तरह तो नहीं होगा!!" यह कहकर वह बेचारी बहुत ही ज्यादा रो रही थी।" शंभू काका यह बताते बताते बहुत ज्यादा भावुक हो कर रोने लगे थे।
मृदुल ने सांत्वना भरा हाथ उनके कंधे पर रखा और कहा, "फिर क्या हुआ..??"
"वहां का होता बेटा..? जब हम वहां पहुंचे तो उनके पापा की हालत बहुत ही खराब थी पर फिर भी उन्हें अनीता बिटिया की ही चिंता थी। जब उन्हें पता चला कि अनीता बिटिया की ससुराल में इतनी ज्यादा दुर्दशा हो रखी है.. तो वह इस बात से बहुत ज्यादा दुखी थे। उन्होंने बीमार होते हुए भी आनन-फानन में अपना घर बेच दिया.. ताकि वह अनीता को कुछ पैसे दे सके.. जिससे अनीता कहीं दूर जाकर अपनी जिंदगी इन दरिंदों की नज़रों से दूर गुजार सकें। लेकिन अगले ही दिन उनकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ गई थी। तभी मैंने अनीता बिटिया को उनसे बात करने के लिए कहा था.. पर बिचारी कैसे करती?? घरवाले उसे किसी से बात ही नहीं करने देते थे। वह तो भला हो रामफूल का..! जो उन्हें घरवालों के मना करने के बाद भी बाहर आने जाने से नहीं रोकता था। अनीता बिटिया की इतनी बुरी हालत थी.. उसी को देखते हुए वह चुपचाप सभी के उठने से पहले मंदिर चली जाती थी और सभी के उठने से पहले ही वापस आ जाती थी। मन हल्का हो जाता था बेचारी का..वरना घर को तो जेल ही बना दिया था उन लोगों ने अनीता बिटिया के लिए। किसी को अभी इस बारे में अभी तक नहीं पता चला था की अनीता बिटिया घर से बाहर भी कहीं जाती थी।" ऐसा कहकर शंभू काका कुछ देर शांत हो गए।
"आप अनीता के पापा के पास गए थे.. किसी को पता नहीं चला। मतलब दीप के घर वालों को..??" चिराग ने पूछा।
"नहीं साहब..!! हम तीरथ यात्रा का बहाना करके घर से गए थे। घरवालों को पता था कि हम अनीता बिटिया को अपनी ही बेटी मानते हैं.. इसीलिए और शायद उनके दिमाग में कोई खुराफात चलती होगी। शायद इसीलिए उन्होंने हमें जाने से नहीं रोका। उन्होंने कहा भी था कि आराम से तीरथ यात्रा करके वापस आना.. वापस आने की कोई भी जल्दी मत करना। जाते जाते हैं दीप ने पचास हजार रुपए भी मुझे दिए थे। यह कहते हुए कि तीरथ यात्रा में जाने पर काम आएंगे। मेरे कोई आगे पीछे तो है नहीं.. मेरे पास भी काफी रकम जमा थी। मैंने सारे पैसे अनीता के पिता के इलाज के लिए खर्च कर दिए फिर भी उन्हें नहीं बचा पाया। ना ही अनीता बिटिया के लिए कुछ कर पाया।" ऐसा कहकर शंभू काका जोर जोर से रोने लगे थे।
मृदुल ने चिराग को देखा और कुछ इशारा किया।
चिराग ने पानी का गिलास शंभू काका की तरफ बढ़ाया और उनकी पीठ सहलाते हुए कहा, "संभालो अपने आपको काका..! बस यह समझ लो कि उनका साथ यही तक का था।"
"ऐसे कैसे समझ ले बेटा..! वह बेचारा आदमी तो उस की बेटी के गम में ही मर गया।"
"काका एक बात बताओ..? आप तो काफी सालों से दीप के घर में काम करते हो!! क्या वहां हमेशा से ही शनिवार को आधा दिन और रविवार को सभी नौकरों की छुट्टी रहती है।" चिराग ने पूछा।
"हां साहब..! यह सिलसिला तो अखिल साहब के वक्त से ही चला आ रहा है।"
"तो फिर आपको भी छुट्टी मिलती थी??" मृदुल ने सवाल किया।
"हां बेटा..! हमें भी छुट्टी मिलती थी..! घर के पिछवाड़े की तरफ थोड़ी बहुत जमीन उस वक्त खाली पड़ी थी। मेरे आगे पीछे कोई था नहीं.. तो उन्होंने वहीं पर मेरे लिए एक कमरा बनवा दिया था। मैं छुट्टी के समय वही रहता था।" शंभू काका ने बताया।
"आपका कमरा..? हमने तो नहीं देखा..??" चिराग ने आश्चर्य से पूछा।
"बेटा वह बंगला बहुत ही ज्यादा बड़ा है। उसके पीछे की दीवार के पास ही एक कोने में मेरा कमरा बना हुआ है। ज्यादा घूमने फिरने का शौक तो मुझे है नहीं। पूरे समय वहीं पर रहता हूं.. बस मुझे बागवानी का थोड़ा बहुत शौक है इसीलिए घर के चारों तरफ बहुत ही सारे फलों के पेड़ उगाए थे। अब तो वह वह काफी बड़े और घने हो गए हैं। इसी की वजह से मेरा कमरा दिखाई नहीं देता।" शंभू काका ने बताया।
"काका.. अनीता की हालत शुरू से ऐसी ही थी?? मतलब जब से वो शादी करके आई तभी से सब लोगों का उसके प्रति ऐसा ही बर्ताव था..??" रुद्र ने पूछा।
"हां साहब..! अनीता बिटिया जब से दीप साहब से ब्याह करी थी.. तभी से सभी घर वाले दीप और अनीता से गुस्सा थे। पर अपने बेटे से गुस्सा कब तक रहते इसीलिए दीप को तो उन्होंने माफ कर दिया। लेकिन उसका पूरा गुस्सा अनीता पर निकालना शुरू कर दिया।" शंभु काका ने कहा।
"एक बात पूछूं काका..! अगर आप बुरा ना माने तो??" रूद्र ने पूछा।
"नहीं साहब..! हम क्यों बुरा मानने लगे??"
"अनीता देखने में बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी और बहुत ज्यादा अमीर भी नहीं थी। फिर भी दीप ने उससे शादी क्यों की??" रुद्र ने सवाल किया।
"यह बात तो आज तक हमें भी समझ नहीं आई थी। लेकिन अनीता बिटिया भले ही बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी। लेकिन उनका दिल बहुत ही अच्छा था.. गुणों की खान थी वह!!" शंभू काका ने कहा।
"एक बात बताइए.. आपको कैसे पता चला कि वो लोग अनीता पर अत्याचार करते हैं??" मृदुल ने सवाल किया।
"क्या कहूं साहब..? ताने मारते और पूरे समय घर का काम करते तो हमने भी अनीता बिटिया को देखा था। बेचारी को एक पल भी आराम नहीं था। इतने सारे नौकर होने के बाद भी बिचारी को पूरे समय घरवालों की फरमाइशें ही पूरे करनी पड़ती थी.. फिर भी किसी को उसकी कदर नहीं थी। सभी बस गालियां ही सुनाते थे।" शंभू काका ने दुखी होते कहा।
"एक बात बताइए काका..! हमने सुना है कि अनीता को 1 महीने के लिए किसी आश्रम में भेजा गया था..?" रुद्र ने पूछा। इस वक्त रुद्र, मृदुल और चिराग तीनों ही शंभू काका से पूछताछ कर रहे थे। इस पूछताछ से बहुत सी ऐसी जानकारियां सामने आई थी जिसने इस केस को अलग ही दिशा देना शुरु कर दिया था।
"हां बेटा.! बिल्कुल सही सुना है! बड़ी मालकिन अवंतिका के गुरुजी है वह.. पता नहीं क्या टोने टोटके होते हैं वहां..! अनीता बिटिया तो वहां जाना ही नहीं चाहती थी। लेकिन उन लोगों के सामने बेचारी की चलती कहां थी.. इसीलिए मजबूरी में जाना पड़ा था। उसके आश्रम से वापस आते ही.. हम उसके पिताजी के पास चले गए थे। पर जब से वो आश्रम से आई थी कुछ गुमसुम सी रहने लगी थी।" शंभू काका ने बताया।
रूद्र ने शंभू काका से पूछा, "काका..! हमारे पास उन घर वालों को गिरफ्तार करने के लिए काफी सबूत है.. क्या आप उन लोगों के खिलाफ अदालत में गवाही दे सकते है। हो सकता है कि आपकी गवाही से अनीता को इंसाफ मिल जाए।"
"बिल्कुल बेटा..! उन लोगों ने हमारी अनीता बिटिया के साथ जो किया है.. उसकी सजा उन्हें मिलनी चाहिए। हम बिल्कुल गवाही देंगे.. अगर हम अपनी बिटिया के लिए कुछ कर सके तो हमें बहुत खुशी होगी।"
"ठीक है.. अब आप आराम कीजिए..! तब तक मैं दीप के खिलाफ और भी सबूत और गवाह इकट्ठे कर लेता हूं। फिर जल्दी ही वह सभी घरवाले सलाखों के पीछे होंगे।" रूद्र ने कहा।
"हां साहब हमारी बिटिया को इंसाफ मिलना ही चाहिए। लेकिन किसी बेगुनाह को इन सब में मत फंसा देना।" शंभु काका ने कहा।
"कौन बेगुनाह काका..??" मृदुल ने चौक कर पूछा।
"जीत.. जीत है वो..! बेटा वह बेचारा तो शुरू से ही इन सब की हरकतों की वजह से विदेश में रहने चला दे गया था। अनीता के बारे में जब उसे पता चला तो उसने घरवालों से बहुत लड़ाई की थी.. ताकि वह लोग अनीता को परेशान करना बंद कर दे। लेकिन बिचारे की किसी ने नहीं सुनी तो वह थक हार कर कभी भी वापस ना आने के लिए चला गया।" शंभु काका ने जीत की तरफदारी करते हुए कहा।
"लेकिन काका अगर आप गवाही देते हैं तो आप फ़िलहाल तो उस घर में वापस नहीं जा पाएंगे। जब तक आप कोर्ट में गवाही नहीं दे देते।" मृदुल ने कहा।
"क्यूँ जाएंगे वहाँ अब..? है कौन हमारा वहां.. अनीता बिटिया थी.. वो तो अब ना जाने कहाँ है..?" शंभू काका फिर से भावुक होने लगे थे।
"ठीक है काका अब आप भी आराम करिए और हम भी करते हैं..! कल का दिन बहुत ही ज्यादा मुश्किल होने वाला है।" रुद्र ने कहा।
उसके बाद वह सभी लोग सो गए। कल का सूरज पता नहीं क्या दिखाने वाला था?? सारे सबूत अनीता के कत्ल की तरफ इशारा कर रहे थे.. सभी लोगों से कहने के हिसाब से घरवाले अनीता को बहुत ही ज्यादा परेशान करते थे। फिर भी उनके पास एक बहुत ही बड़ा हथियार था.. वह था अनीता की लाश का ना मिलना। यही उनके लिए सबसे बड़ा प्लस पाॅइंट था। अब अगर अनीता के कातिलों को सजा दिलवानी थी तो रुद्र, मृदुल और चिराग को जल्दी से जल्दी अनीता की लाश को ढूंढना होगा।
अगला दिन नई सुबह और नया जोश लेकर आया था। सुबह-सुबह सभी जल्दी ही उठ गए थे.. बस केवल शंभू काका ही सो रहे थे। चिराग और मृदुल दोनों ही नहा धोकर तैयार हो गए थे और रुद्र भी नहाने गया हुआ था। जैसे ही रूद्र नहा कर बाहर आया तब तक चिराग चाय नाश्ता तैयार कर दिया था। शंभू काका भी तब तक उठ कर आ गए थे।
सभी ने बैठकर चाय पी और रूद्र ने मृदुल और चिराग से कहा, "तुम दोनों आज समर के पास जाकर सारे सबूतों की रिपोर्ट लेकर आओगे और वह लेकर आने के साथ ही मृदुल तुम.. जो कल गार्डन से मिट्टी लाए थे.. वह मिट्टी भी समर को देकर आना ताकि पहले मिली मिट्टी के साथ उसे मैच करके देख सके। चिराग तुम..!!"
"हाँ..!!" चिराग ने पूछा।
"तुम वो जो आधी फटी हुई डायरी हमें मिली थी.. उसे पूरा पढ़कर शाम को मुझे उस बारे में रिपोर्ट दोगे।" रूद्र ने कहा।
"और मृदुल तुम..!"
"बोलो..!!"
" तुम उन सारी चीजों को देखकर.. दीप और उसके परिवार के खिलाफ एक बहुत ही स्ट्रांग केस तैयार करोगे। हमें जल्द से जल्द इस केस की चार्ट शीट फाइल करनी होगी। साथ ही केस को इतना ज्यादा स्ट्रांग बनाना होगा की.. कोई भी वकील.. चाहे वह कितना ही बड़ा हो चाहे कितना ही छोटा.. दीप और उसके परिवार को नहीं बचा पाए।" रूद्र ने इंस्ट्रक्शन देते हुए कहा।
"ठीक है.. हम दोनों आज ही काम पूरा कर देंगे।"
ये सब सुनकर ही शंभू काका की आंखों में आंसू आ गए थे। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "साहब..! आप लोग हमारी अनीता बिटिया के लिए इतना कुछ कर रहे हैं। उसके लिए आपका जितना भी धन्यवाद किया जाए उतना कम है.. वरना आजकल तो इतने पैसे वाले आदमी को सजा दिलवाने की कोशिश करना तो दूर.. कोई उनके खिलाफ कुछ भी करने की सोचता तक नहीं है।"
"ऐसा नहीं है काका.. सभी लोग एक जैसे नहीं होते और वैसे भी आप भी तो हमारी मदद कर ही रहे हैं। हम सब एक दूसरे की मदद से जिसने भी गुनाह किया है.. उनको सजा दिलवाकर ही रहेंगे।" मृदुल ने कहा।
मृदुल ने फिर रुद्र की तरफ देखते हुए पूछा, "और तेरा क्या प्रोग्राम है.. आज का??"
"मैं आज सबसे पहले मंदिर जाऊंगा वहां पर पुजारी से और वहां पर आने वाले बुजुर्गों से गवाही देने के लिए कहूंगा और फिर दीप की सोसाइटी के गार्ड और आसपास काम करने वाले चौकीदारों से भी गवाही देने के लिए बात करूंगा। हमें अपने केस को मजबूत बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सबूत और गवाह चाहिए होंगे। सबूत तो फिलहाल हमारे पास बहुत से हैं और गवाही के लिए सिर्फ अभी शंभू काका ही है। और भी लोग होंगे तो हमारा केस और भी मजबूत होगा।" रुद्र ने कहा.. तो सभी ने उसकी हां में हां मिलाई फिर रूद्र ने आगे कहा।
"और फिर.. उसके बाद मैं दीप को अरेस्ट करने से पहले कमिश्नर साहब से मिलने जाऊंगा। इतना हाई प्रोफाइल केस होने की वजह से बिना कमिश्नर साहब के सपोर्ट और अरेस्ट वारंट इश्यु किए हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे।"
"ठीक है.. तुम अपना काम जल्दी ही खत्म करके यही मिलना।" मृदुल ने कहा।
वो तीनों ही घर से बाहर निकलने के लिए तैयार हो गए। जाते-जाते रुद्र ने शंभू काका से कहा, "काका.. आप बिल्कुल भी घर से बाहर नहीं निकलेंगे और किसी को भी नहीं बताएंगे कि आप यहां रह रहे हैं। अगर दीप या उसके परिवार को आपके बारे में पता चल गया तो वो लोग आप पर दबाव डालने की कोशिश करेंगे। जिससे हमारा केस कमजोर हो सकता है और उन्हें बच निकलने के लिए एक रास्ता भी मिल सकता है।"
"नहीं बेटा.. मैं ऐसा कोई भी काम नहीं करूंगा जिससे अनीता बिटिया के गुनहगारों को सजा ना मिले। मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगा।" शंभू काका ने आश्वासन दिया।
उसके बाद जल्दी ही तीनों घर से बाहर निकल गए। मृदुल और चिराग दोनों पहले फॉरेंसिक लैब के लिए निकले और रुद्र ने मन्दिर जाने से पहले दीप की सोसायटी जाने का सोचा और सीधा दीप की सोसाइटी की तरफ चला गया।
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जल्दी ही रूद्र दीप की सोसाइटी के बाहर खड़ा था। वहां पर रखी चाय की टपरी पर अभी बहुत ज्यादा लोग नहीं आए थे.. इसीलिए रुद्र ने सबसे पहले उस सोसाइटी के गार्ड से बात करने की सोची और अपनी गाड़ी एक तरफ पार्क करके गार्ड के पास चला गया।
"नमस्कार साहब..! कुछ पता चला अनीता मैडम का..??" गार्ड ने पूछा।
"नहीं. ! फिलहाल तो नहीं.. पर उसी सिलसिले में मुझे तुमसे कुछ बात करनी है?" रूद्र ने कहा।
"जी साहब बताइए..??"
"क्या तुम हमारी मदद करते हुए दीप के खिलाफ कोर्ट में गवाही दे सकते हो..??" रूद्र के इतना कहते ही वह गार्ड थोड़ा सा चौंक गया और घबराते हुए बोला, "गवाही..! कैसी गवाही साहब..??"
"तुम्हें तो नहीं पता होगा.. लेकिन दो दिन पहले ही दीप के घर से अनीता की खून में रंगे हुए कपड़े और उसकी डायरी मिली है। उनके हिसाब से अनीता का कत्ल किया जा चुका है और वह कत्ल दीप और उसके परिवार ने किया है।"
"क्याऽऽऽ.. अनीता मैडम का खूनऽऽ..??" वह गार्ड यह सुनकर बहुत ही ज्यादा चौक गया और लगभग रोते हुए कहने लगा, "साहब.. हम बहुत छोटे आदमी हैं.. अगर हम दीप के खिलाफ गवाही देने गए और हमारी नौकरी चली गई तो..? हम क्या करेंगे?? हमारे परिवार में हम ही एक अकेले कमाने वाले हैं!!"
"देख लो.. अगर यहां से तुम्हारी नौकरी जाती भी है तो तुम्हारी नौकरी लगवाने की जिम्मेदारी मेरी होगी..! क्या तुम अब गवाही देने के लिए तैयार हो??" रुद्र ने उसे आश्वासन देते हुए कहा।
"जी साहब अब आप खुद हमारी नौकरी लगवाने का बोल रहे हैं तो हम देंगे गवाही..!"
"धन्यवाद.. तुम्हारी ही वजह से हो सकता है कि अनीता के कातिलों को सजा मिल जाए।" ऐसा कहकर रूद्र चाय की टपरी की तरफ चला गया।
अब तक वहां उस दिन बैठे सभी लोग आ चुके थे। साथ ही कुछ और लोग भी वहां आकर बैठे हुए थे। रूद्र को देखते ही सभी ने उसे नमस्कार किया और पूछा, "साहब अनीता मैडम का कुछ पता चला??"
"नहीं कुछ भी पता नहीं चला.. लेकिन अगर तुम्हें अनीता की एहसानों का बदला चुकाने का मौका मिले तो क्या तुम चुकाओगे..??" रुद्र ने उनके मनों को टटोला।
"बिल्कुल साहब.. अगर हमें मौका मिला तो हम लोगों से.. जो भी बन पड़ेगा.. हम वह करेंगे।" एक चौकीदार ने कहा।
"क्या तुम लोग कोर्ट में गवाही दे सकते हो??" रुद्र ने पूछा।
कोर्ट में गवाही का नाम सुनकर सभी लोगों को जैसे सांप ही सुंघ गया था।
एक ने कहा, "साहब ऐसा भी क्या हो गया जो मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंच गया?"
"अनीता का कत्ल हो गया है..!!" रूद्र के बात पूरा करने से पहले ही सभी लोग सदमे से उठ खड़े हुए और आपस में कुछ बातें करने लगे।
एक ने कहा, "कब.. कैसे..? ऐसा कैसे हो सकता है?? 2 दिन पहले ही तो आपने कहा था कि अनीता मैडम गायब है!! अब आज आप बोल रहे हो कि अनीता मैडम का कत्ल हो गया। साहब सुबह-सुबह ऐसा मजाक ना करो।"
"यह मजाक नहीं है.. यह सच है। जिस दिन मैं तुमसे मिला था.. उसी दिन दीप के घर से अनीता के खून से रंगे कपड़े, उसकी लिखी हुई डायरी और भी बहुत कुछ मिला है.. जिसके हिसाब से शक है कि दीप और उसके परिवार ने हीं अनीता का कत्ल किया है।" रुद्र ने पूरी बात संक्षेप में बता दी।
"साहब ऐसा कैसे हो सकता है..?" एक चौकीदार ने कहा।
"क्यों नहीं हो सकता?? तुम लोगों ने ही तो कहा था की अनीता के शरीर पर चोटों के निशान तुम लोगों ने भी देखे थे और अब जब यह बात पता चली चुकी है कि अनीता का कत्ल हो चुका है। तो तुम इस बात को मानने से इंकार कर रहे हो।" रूद्र ने थोड़ा झूठ बोलते हुए.. उन्हें गवाही देने के लिए मनाने की कोशिश की।
"नहीं साहब.. हम यह काम नहीं कर पाएंगे। हमारे मालिकों को पता लगा तो वह लोग हमें नौकरी से निकाल देंगे यह हम से नहीं होगा..!!" एक चौकीदार ने कहा।
छोटू वहीं खड़ा उन सभी की बातें सुन रहा था। उसने रूद्र के पास आकर कहा, "सर आपको गवाह ही तो चाहिए.. क्या फर्क पड़ता है कि वह गवाह यह लोग हो या मैं..!! मैं अदालत में जाकर यह कहने के लिए तैयार हूं कि अनीता दीदी बहुत ही अच्छी थी.. पर उनके घर वाले उन्हें बहुत ही तंग करते थे!!"
रूद्र ने छोटू के सर पर हाथ रखा और वापस मुड़कर अपनी गाड़ी की तरफ चला गया। सभी चौकीदारों में कानाफूसी शुरू हो गई थी। कुछ देर तक ऐसे ही कानाफूसी का दौर चलता रहा। तब तक रूद्र अपनी गाड़ी के पास पहुंच गया था। जैसे ही रूद्र गाड़ी में बैठने वाला था.. सभी चौकीदार भागते हुए रूद्र के पास आए और कहने लगे, "साहब अनीता मैडम.. ने हमारे लिए जो कुछ भी किया है उसका बदला तो हम इस जन्म में नहीं चुका सकते। अगर हमारी गवाही देने से अनीता मैडम के मुजरिमों को सजा मिल सकती है.. तो हम जरूर गवाही देंगे।"
यह सुनकर रूद्र खुश हो गया और हाथ जोड़ते हुए बोला, "जैसे ही जरूरत होगी हम आपके पास आप सभी के बयान लेने जरूर आएंगे। और जरूरत पड़ने पर ही आपको कोर्ट आना होगा गवाही देने।"
ऐसा कहकर रुद्र वहां से अपनी गाड़ी लेकर निकल गया।
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लगभग आधे घंटे बाद रुद्र मंदिर पहुंच गया। अभी तक पुजारी जी मंदिर नहीं आए थे.. लेकिन उस दिन मिले बुजुर्ग आज भी वहीं बैठे आपस में बातें कर रहे थे।
रूद्र तेज कदमों से चलता हुआ उनके पास पहुंचा और बोला, "नमस्ते अंकल.. कैसे हो आप सब..?"
"हम बिल्कुल ठीक है रूद्र..! आप कैसे हो?? अनीता बिटिया की कुछ खबर मिली??" श्रीवास्तव जी ने पूछा।
"हां अंकल मिली..!"
"क्याऽऽऽ..?? कहां है वह?? ठीक तो है??" एक बुजुर्ग अंकल ने पूछा।
"नहीं अंकल..! अब अनीता को ठीक होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।" रूद्र ने मायूसी से कहा।
"क्या कहना चाहते हो..? साफ-साफ कहो..??" एक और अंकल ने कहा।
"अंकल अनीता का कत्ल हो चुका है?? और उसी सिलसिले में मैं आप लोगों से और पुजारी बाबा से मिलने आया था??" रुद्र ने दुखी होकर कहा।
"क्याऽऽऽ अनीता का कत्ल?? कब? कैसे हुआ?? तुम्हें कैसे पता चला??" श्रीवास्तव अंकल ने बहुत परेशान होते पूछा।
"अंकल उसके ससुराल से उसके खून से भरे कपड़े और उसकी कुछ जरूरी चीजें मिली। उन्हीं के हिसाब से यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि अनीता का कत्ल हो चुका है। पूरा पूरा शक उसके पति और ससुराल वालों पर है। आप लोग भी तो उस दिन यही बता रहे थे।" रूद्र ने कहा।
"हां बेटा.. हम यही बता रहे थे पर वह लोग अनीता का कत्ल कैसे कर सकते हैं?" शर्मा अंकल ने दुखी होकर कहा।
"अंकल वह तो नहीं पता कि कैसे कर सकते हैं?? पर उन लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए हमें बहुत से गवाहों और सबूतों की जरूरत होगी। इतने पैसे वाले लोग हैं.. तो छोटे मोटे सबूतों से और गवाहों से उन लोगों को सजा भी नहीं होगी! वह साफ-साफ बच के निकल जाएंगे।" रूद्र ने दुखी होते हुए कहा।
"बिल्कुल ठीक बोल रहे हो तुम.. अगर तुम चाहो तो हम लोग गवाही दे सकते हैं।" श्रीवास्तव अंकल ने कहा। सभी लोगों ने श्रीवास्तव अंकल जी हां में हां मिलाई और कहा, "हां बेटा अनीता बिटिया के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं कि उसके कातिलों को सजा दिलवा पाए।"
"अंकल आप एक बार फिर से सोच लीजिए। कल को कहीं ऐसा ना हो कि आप लोग किसी दबाव में आकर अपनी गवाही से मुकर जाएं।"
"नहीं बेटा!! अब इस उमर में हमारे पास कुछ तो है नहीं। हमारे अपने बच्चों ने तक हमें दूध में गिरी मक्खी की तरह अपने परिवार से अलग कर दिया है। सिर्फ अनीता बिटिया ही थी जो हमारा दुख समझती थी.. लेकिन अब उन दुष्टों के कारण वह भी हमारे पास नहीं रही।" शर्मा जी ने दुखी होते हुए कहा।
जब सब लोग वहां इकट्ठे हुए बातें कर रहे थे तभी पुजारी जी भी वहां पहुंच गए। सभी लोगों को वहां पर देख वह भी वहीं आ गए।
उन्होंने पूछा, क्या बात है..?? आज यहां इस तरह से मीटिंग क्यों जमाई हुई है..??" पुजारी जी ने थोड़े मजाकिया स्वर में कहा।
लेकिन सभी की उतरी हुई शक्लें देखते ही वह सीरियस हो गए थे। फिर उनकी नजर रूद्र पर पड़ी तो उन्होंने रुद्र से पूछा, "तुम इस वक्त यहां?? कोई खास बात..??"
तभी शर्मा जी ने आकर पुजारी जी के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "अनीता बिटिया का कत्ल हो चुका है.. और वह कत्ल उसके ससुराल वालों ने किया है।"
यह सुनते ही पुजारी जी थोड़ा लड़खड़ा गए.. लेकिन जल्दी ही उन्होंने अपने आप को संभाला और हाथ जोड़कर मां की तरफ देखा और कहा, "मां उसने अपने दुखों से मुक्ति मांगी थी जीवन से नहीं.. तूने तो उसे ऐसी मौत दे दी यह कहां का न्याय है मां..??"
यह कहते कहते उनकी आंखों में आंसू थे। रूद्र अभी भी वहां चुपचाप बैठा हुआ था। श्रीवास्तव जी ने आगे बढ़कर पुजारी जी का हाथ अपने हाथों में थामा और दिलासा देते हुए कहा, "अब कर्म के लिखे को कौन मिटा सकता है.. लेकिन हम सब ने मिलकर यह फैसला किया है कि जिसने भी अनीता बिटिया के साथ यह सब किया है। उन लोगों को हम सजा दिलवाकर ही रहेंगे। हम लोग अनीता के ससुराल वालों के खिलाफ गवाही देंगे.. जिससे अनीता को इंसाफ मिले और कम से कम मरने के बाद तो उसकी आत्मा को शांति मिले।"
पुजारी जी ने भी अपने आंसू पौछे और रुद्र के पास जाकर बैठ गए और कहा, "बेटा.. हम सभी अनीता बिटिया के लिए इतना तो कर ही सकते हैं। हम सब गवाही देने जरूर आएंगे। बस तुम हमको बता देना कि कब और क्या करना है??"
यह सुनकर रूद्र थोड़ा सा रिलैक्स महसूस कर रहा था। वह वहां से उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर सभी से कहने लगा, "आप लोगों ने जो भी कुछ करने का फैसला किया है वह बहुत ही अच्छा किया है। मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा इस संसार में कोई दूसरी अनीता पैदा ना हो और हर अनीता को आपके जैसे लोग मिले।" ऐसा कहकर रूद्र वहां से निकल गया।
उसने अपनी गाड़ी में बैठ कर सोचा, "अच्छा हुआ कि सभी लोग गवाही देने के लिए तैयार हो गए। अब दीप को कोई भी नहीं बचा सकता। उन लोगों को उनके किए की सजा मिलकर ही रहेगी।" ऐसा कहते हुए उसने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और कमिश्नर के ऑफिस की तरफ निकल गया।
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रूद्र जब कमिश्नर ऑफिस पहुंचा.. उस वक्त कमिश्नर किसी जरूरी मीटिंग में बिजी थे। इसीलिए रुद्र को कुछ देर इंतजार करने के लिए कहा गया। रूद्र वहीं बैठकर कमिश्नर साहब के फ्री होने का इंतजार करने लगा।
कुछ देर बाद जब कमिश्नर साहब ने रुद्र को अपने केबिन में बुलाया और कहा, "रूद्र.. कैसे आना हुआ??"
"आपकी एक हेल्प चाहिए..!"
"हेल्प..! किस तरह की हेल्प..??"
"आपको तो पता ही है दीप के घर से हमें क्या क्या सबूत मिले हैं..!"
"हां उस दिन तुमने फोन पर बताया था!!"
"जी सर..! दीप के घर से अनीता के खून से रंगे हुए कपड़े, उसकी डायरी और अनीता के कमरे में ब्लड से सने हाथ के निशान और जमीन पर सेव मी फ्रॉम दीप लिखा हुआ मिला..जोकि साफ कर दिया गया था।"
"साफ कर दिया गया था तो तुम्हें कैसे मिला??"
"सर.. इंफ्रारेड लाइट और उसी इंफ्रारेड लाइट यूज़्ड कैमरा का यूज करने पर वहां पर इस तरह के बहुत से निशान मिले हैं।"
"ओके..! तो इन सब में तुम मुझसे क्या चाहते हो??"
"सर दीप और उसके परिवार के खिलाफ अरेस्ट वारंट चाहिए??"
"व्हाट..! तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया! पता भी है दीप कितना बड़ा आदमी है?? ऐसे ही दीप के खिलाफ अरेस्ट वारंट कैसे भी इशू कर दें!! डेड बॉडी मिली अनीता की..?? अगर तुम अनीता की डेड बॉडी ढूंढ लेते हो तो फिर मैं इस बारे में सोच सकता हूं!! नहीं तो दीप को अरेस्ट करने के बारे में भूल ही जाओ।"
"लेकिन सर.. इतने सारे सबूत तो मिले हैं!"
"बाकी सबूतों का क्या?? लाश के ना मिलने पर उन सबूतों की धज्जियां तो उनका वकील कोर्ट में दो ही मिनट में उड़ा ही देगा! तुम तो ऑलरेडी सस्पेंडेड हो बाकी दोस्तों को भी सस्पेंड करवाना है क्या..?" कमिश्नर ने वार्निंग देते हुए कहा।
"सर सस्पेंडेड होते हुए भी यह केस मैंने सॉल्व कर दिया और अब आप अरेस्ट वारंट भी नहीं दे रहे??"
"रुद्र तुम भी समझो..! जितना ये केस तुम्हें सीधा लग रहा है.. इतना सीधा है नहीं!! मैं ऐसे ही तुम्हें इतने बड़े आदमी के खिलाफ अरेस्ट वारंट नहीं दे सकता।"
"तो फिर यह केस क्यों दिया था? जब आप लोगों ने यह फाइल बंद कर ही दी थी.. तो वापस ओपन करने की जरूरत थी क्या पड़ी थी??" रुद्र ने थोड़ा तल्खी से जवाब दिया।
"हमारे भी हाथ बंधे हुए हैं रूद्र..! दीप की पहुंच काफी ऊपर तक है। इसीलिए बिना ठोस सबूत के मैं तुम्हें अरेस्ट वारंट नहीं दे सकता।" कमिश्नर ने अपनी असमर्थता जताई।
"ठीक है सर..! तो फिर अब आप खुद कल मुझे कॉल करके दीप और उसके परिवार का अरेस्ट वारंट देंगे!! फिलहाल में चलता हूं..!!" ऐसा कहकर रुद्र उठ खड़ा हुआ।
रुद्र के साथ साथ कमिश्नर भी अपनी कुर्सी से उठकर खड़े हो गए और पूछा, "तुम करने क्या वाले हो रूद्र..??"
"सर.. वह भी आपको कल ही पता चल जाएगा! अब मैं चलता हूं!!" ऐसा कहकर रूद्र कमिश्नर ऑफिस से बाहर निकल गया।
"रूद्रऽऽऽ रूद्रऽऽऽऽ…!!!" कमिश्नर पीछे से आवाज़ देते ही रह गए।
बाहर आकर रुद्र ने गुस्से से अपनी गाड़ी पर जोरदार लात मारी और इधर उधर गुस्से से टहलने लगा।
"कमिश्नर साहब को बोल तो आया लेकिन अब ये होगा कैसे..??" रुद्र मन ही मन सोचता हुआ इधर-उधर घूम रहा था। अचानक उसके दिमाग में कुछ आया..
रुद्र ने समर को कॉल किया और पूछा, "हैलो.. समर..!!"
"हैलो..!!" सामने से समर की आवाज़ आई।
"आज सुबह मृदुल ने तुम्हें एक मिट्टी का सैम्पल दिया होगा टेस्ट के लिए..??" रुद्र ने पूछा।
"हाँ.. दिया था क्यूँ..??"
"वो टेस्ट हो गया..??" रुद्र ने पूछा।
"फ़िलहाल तो नहीं.. क्यूँ क्या हुआ है..??" समर ने जल्दी से पूछा।
"अगर अभी उसे टेस्ट करो तो.. रिपोर्ट कितनी देर में मिल सकती हैं।" रूद्र ने पूछा।
"दो से तीन घंटे लगेंगे..!!" समर ने कहा।
"ठीक है..! जल्दी से जल्दी उसे टेस्ट कर के मुझे रिपोर्ट दो..!!" रुद्र ने कहा और कॉल काट दिया।
समर से बात करने के बाद रुद्र के चेहरे पर एक विशेष मुस्कान आ गई। रुद्र ने तुरंत ही एक कॉल किया..
"सुनो.. तुम्हारें काम की एक ख़बर है..!!"
"द होटल किंग दीप राज.. और उसके परिवार ने मिलकर दीप की पत्नी अनीता की हत्या कर दी है!!"
क्रमशः...
Seema Priyadarshini sahay
15-Jun-2022 06:47 PM
बेहतरीन रचना
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Aalhadini
16-Jun-2022 01:08 AM
बहुत बहुत आभार 🙏🙏
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Pallavi
15-Jun-2022 11:01 AM
Nice post
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Aalhadini
16-Jun-2022 01:07 AM
Thanks sir 🙏
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Shrishti pandey
15-Jun-2022 10:29 AM
Nice one mam
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Aalhadini
16-Jun-2022 01:07 AM
Thank you very much 😊 🙏
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